बाजरा की खेती
बाजरा की उपयोगिता
बाजरा सहारा की केंद्रीय पहाड़ियों की दक्षिणी सीमा से कुछ 4000 5000 साल पहले खाद्य फसल के रूप में अपनाया गया था। तब से यह अफ्रीका और एशिया के अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैल गया है।
विकासशील देशों में बाजरा शुष्क एवं उष्ण क्षेत्र में एक पारंपरिक रूप से एक महत्वपूर्ण अनाज, चारा एवं ईंधन की फसल है। शुष्क एवं उष्ण प्रदेश, न्यूनतम उपजाऊ मिट्टी में भी उपज देने वाला अनाज है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उपजने की क्षमता होने की वजह से यह उन क्षेत्रों में भी उपजता है जहाँ मक्का व गेहूँ का उत्पादन नहीं हो सकता है।
इस अनाज में ऐसे जैव-रसायन पाए जाते है, जो कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में सक्षम है। इसमें फोलिएट, मैग्नीशियम, कॉपर, जिंक, तथा विटामिन ई एवं बी काम्प्लेक्स भी पाया जाता है। अन्य मिलेट्स की अपेक्षा बाजरे में ऊर्जा की मात्रा अधिक होती है। इसमें कैल्शियम व अनसैचुरेटेड फैट भी प्रचुर मात्रा में है, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
“उत्तर प्रदेश में क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा का स्थान गेहूँ, धान और मक्का के बाद आता है। कम वर्षा वाले स्थानों
के लिए यह एक अच्छी फसल हैं। 40 से 50 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। बाजरा की खेती मुख्यतः आगरा, बरेली एवं कानपुर मण्डलों में होती है।
निम्न सघन पद्धतियां अपनाकर उत्पादकता में पर्याप्त बढ़ोत्तरी की जा सकती हैं-
प्रजातियों का चयन : अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु उन्नतशील प्रजातियों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिए। बुवाई के समय के अनुसार प्रजाति का चयन करें।
भूमि का चुनाव : बाजरा के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक हैं।
भूमि शोधन : फसल को भूमि जनित रोगों से बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा हारजियेनम 2% डब्लू.पी. की 2.5 किग्रा. मात्रा प्रति हे0 60-75 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त आखिरी जुताई के समय खेतों में मिला दें। दीमक, सफेद गिडार, सूत्रकृमि, जड़ की सूण्डी, कटवर्म आदि कीटों से बचाव हेतु ब्यूवेरिया बैसियाना 1% डब्लू.पी. बायो- पेस्टीसाइड्स की 2.5 किग्रा. मात्रा प्रति हे0 60–75 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देना चाहिए।
खेत की तैयारी : पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयां उन्नत कृषि यंत्रों अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।
बुवाई का समय तथा विधि : बाजरे की बुवाई जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य तक सम्पन्न कर ले। बुवाई 50 सेमी. की दूरी पर 4 सेमी. गहरे कुण्ड में हाल के पीछे करे ।
बीज दर : 4-5 किग्रा. प्रति हे0 ।
बीज का उपचार : यदि बीज उपचारित नहीं है तो बोने से पूर्व एक किग्रा. बीज को थीरम के 2.50 ग्राम से शोधित कर लेना चाहिए। अरगट के दानों को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर निकाला जा सकता है ।
उर्वरकों का प्रयोग : मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें। यदि मृदा परीक्षण के परिणाम उपलब्ध न हो तो संकर प्रजाति के लिए 80-100 किग्रा. नत्रजन, 40 किग्रा. फास्फोरस एवं 40 किग्रा. पोटाश तथा देशी प्रजाति के लिए 40-50 किग्रा. नत्रजन, 25 किग्रा. फास्फोरस तथा 25 किग्रा. पोटाश प्रति हे. प्रयोग करें। फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पहले बेसल ड्रेसिंग और शेष नत्रजन की आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में पौधे 25-30 दिन के हो जाने पर देनी चाहिए ।
विरलीकरण (थिनिंग) तथा निराई-गुड़ाई : बाजरा की खेती में निराई-गुड़ाई का अधिक महत्व है। निराई-गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ ही ऑक्सीजन का संचार होता है जिससे वह दूर तक फैल कर भोज्य पदार्थ को एकत्र कर पौधों को देती है। पहली निराई जमाव के 15 दिन बाद कर देना चाहिए और दूसरी निराई 35-40 दिन बाद करनी चाहिए।
बाजरा में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए :
1)
एट्राजीन 2 किग्रा. प्रति हे. अथवा 800 ग्राम प्रति एकड़ मध्यम से भारी मृदाओं में तथा 1.25 किग्रा. प्रति हे. अथवा 500 ग्राम प्रति एकड़ हल्की मिट्टी में बुवाई के तुरन्त 2 दिनों में 500 लीटर/हे. अथवा 200 लीटर/ एकड़ पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए।
इस शाकनाशी के प्रयोग से एकवर्षीय घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुत ही प्रभावी रूप से नियंत्रित हो जाते हैं। इस रसायन द्वारा विशेषरूप से पथरचटा भी नष्ट हो जाता है ।
2)
हार्डी खरपतवारों जैसे कि वन पट्टा (ब्रेचेरिया रेप्टान्स), रसभरी (कोमेलिया बैन्गेलेन्सिस) को नियन्त्रित करने हेतु बुवाई के दो दिनों के अन्दर एट्राजीन 600 ग्राम + पेण्डीमेथिलीन 30% ई.सी. 1 लीटर प्रति एकड़ अच्छी तरह से मिलाकर 200 लीटर पानी के साथ प्रयोग करने पर आशातीत परिणाम आते है।
सिंचाई : खरीफ में फसल की बुवाई होने के कारण वर्षा का पानी ही उसके लिए पर्याप्त होता है। इसके अभाव में एक या दो सिंचाई फूल आने पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए ।
qt8gt0bxhw|0000D798133E|anndata_store|fasal_blog|blog_detail|BB3933DB-033A-4397-811E-3244506CEA93